10 मई का दिन इतिहास में खास, आज ही के दिन 1857 में उठी देश को आजाद कराने की पहली चिंगारी

10 मई का दिन इतिहास में खास, आज ही के दिन 1857 में उठी देश को आजाद कराने की पहली चिंगारी

देश को आजाद कराने के लिए देश में पहली आजादी की चिंगारी आज ही के दिन 10 मई को 1857 में पड़ी। ये दिन भारत के लिए ऐतिहासिक है। मेरठ में देश को आजाद कराने की राह में निकले कई आंदोलकारियों ने अंग्रेजों को भगाने और भारतीय लोगों को आजादी देने के लिए नारे लगाने, धरना देना और जान की परवाह किए बगैर अंग्रेजों से आंख से आंख मिलकार लड़ाई लड़नी शूरू की।

इस संघर्ष का नेतृत्व मंगल पांडे ने किया और इसमें हिंदू और मुसलमान सभी कूद पड़े। यह पहले स्वतंत्रता संग्राम आगे जाकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में परिवर्तित हुआ।  यह संग्राम मेरठ में शुरू होकर दिल्ली, आगरा, कानपुर और लखनऊ तक फैल गया जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले भारतीय सिपाहियों के द्वारा शुरू किया गया था। भारत में 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और इसी तरह के अन्य नामों से जाना जाता है। 1857 में हुए इस क्रांति के कई कारण हैं जिसने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम को अंजाम दिया। आइये जानते हैं उन कारणों के बारे में।

भारतीय में कई उद्योग नष्ट हो गए थे। इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति ने मशीनों को भारतीय कच्चे माल का शत्रु बना दिया और देश के विदेश व्यापार को नष्ट कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत केवल कच्चे माल का निर्यातक बनकर ही रह गया था।

नई एनफील्ड राइफल की शुरूआत भी विद्रोह का सबसे महत्वपूर्ण कारण था। इसे लोड करने के लिए, सिपाहियों को चिकनाई वाले कारतूसों के सिरों को काटना पड़ता था। सिपाहियों के बीच एक अफवाह फैल गई कि कारतूसों को चिकना करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला तेल सूअरों और गायों की चर्बी का मिश्रण था और इस प्रकार मांस से संपर्क करना मुसलमानों और हिंदुओं दोनों का अपमान था। अपने अपमान और भावनाओं से खिलवाड़ करने के विरोध में सिपाहियों ने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम को अंजाम दिया।

सतारा, नागपुर, झांसी, संभलपुर, करौली, उदयपुर, बघाट आदि के कुख्यात डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स द्वारा कब्जा करने से भारतीय जनता में सामान्य घृणास्पद भावना पैदा हुईं। नागपुर में शाही सामान की खुली नीलामी हुई जिसके कारण भारतीयों में बेहद आक्रोश की भावना आ गई।

अंग्रेजी सेना में भारतीय सिपाही भेदभाव के शिकार थे। उन्हें कम वेतन दिया जाता था और उन्हें अपने मालिकों से लगातार शोषण का सामना करना पड़ता था। 1856 में अवध पर कब्जा करने से बंगाल सेना में असंतोष पैदा हो गया। हद तब हो गई जब भारतीय सिपाहियों को अपने माथे पर जाति के निशान लगाने, दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने से मना किया गया।

अंग्रेजों ने भारतीयों को अपने ही देश में महत्वपूर्ण और उच्च पदों से वंचित कर दिया था। भारत में ब्रिटिश गतिविधियों के स्थानों में पर साइन बोर्ड पर ‘कुत्तों और भारतीयों की अनुमति नहीं है’ इस तरह के अपमानित वाक्य लिखने आम थे।

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Comments

  • D Devendra Kumar Bsp
  • S Sri bhagwan क्या इंडिया वाले यही सब सहने के लिये पैदा हुए है नितिन गडकरी साहब , कंपनी पर ऐसा फाइन लगाओ दूसरे भी याद रखे
  • P Pankaj kumar पुलिस
  • M Manish kumar parjapity Superb
  • P Pankaj kumar Jay shri ram