केदारनाथ धाम आपदा का एक दशक पूरा... भयंकर तबाही में मंदिर छोड़ बाकी सब कुछ हो गया था तबाह

केदारनाथ धाम आपदा का एक दशक पूरा... भयंकर तबाही में मंदिर छोड़ बाकी सब कुछ हो गया था तबाह

16 जून 2103 में आई केदारनाथ में आपदा ने मंदिर छोड़ बाकी सब तबाह कर दिया था। चारों तरफ पानी, मलवा, और बहते शव, कुछ जख्मी, लोग डराता जल प्रलय जिससे लगा था मानों सब कुछ तबाह हो गया है। इस प्रलय में सिवाय मंदिर के सब धवस्त हो गया था। रामबाड़ा से आगे पैदल रास्ता भी पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। तब सभी को लगा था कि भविष्य में केदारपुरी पुरानी जैसी नहीं हो पाएगी। लेकिन, आपदा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत केदारपुरी संवरने लगी और हर साल तीर्थयात्री बड़ी संख्या में धाम में पहुंचने लगे।  

केदारनाथ में आई आपदा के दस साल बाद आज बड़ी संख्या में तीर्थयात्री दर्शन करने पहुंच रहे हैं। 2013 से पहले जहां सीमित संख्या में तीर्थयात्री भगवान केदारनाथ के दर पर पहुंचते थे तो वहीं अब बदलते स्वरूप, निखरती केदारपुरी में सबसे ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं। 2022 के बाद केदारनाथ में रात के समय में भी मंदिर को तीर्थयात्रियों के लिए खुला रखना पड़ रहा है।  हर दिन 20 हजार से ज्यादा तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुच रहे हैं। यह सभी मंदिर मे बेहतर सुविधाओं के कारण हो पाया है।

वर्तमान में चारों धाम में सबसे अधिक तीर्थयात्री केदारनाथ दर्शन के लिए ही पहुंच रहे हैं। आस्था के आगे 16 किमी लंबे पैदल मार्ग की चुनौतियां भी लोगों को नहीं दिखाई दे रही। धाम समेत पैदल मार्ग के पड़ावों पर यात्री सुविधाएं बेहतर होने से हर कोई बाबा केदार के दर्शन करना चाहता है। धाम में न केवल तीर्थ यात्रियों के खाने-ठहरने की सुविधाएं बढ़ी हैं, बल्कि केदारपुरी की पहाड़ियों पर विकसित ध्यान गुफाएं भी देश-विदेश का ध्यान खींच रही हैं। इससे केदारघाटी में छोटे-बड़े व्यापारी और होटल व्यवसायियों के चेहरे भी खिले हुए हैं।

वहीं केदारनाथ में भोले बाबा के दर्शन करने के लिए हेली सेवाओं का भी काफी प्रय़ोग हो रहा है। वर्तमान में लगभग 1500 यात्री हेली सेवा के द्वारा केदारनाथ पहुंच रहे हैं। 2023 की जारी यात्रा में 25 अप्रैल को कपाट खुलने के बाद से अब तक 51,635 तीर्थयात्री हेली सेवा से केदारनाथ पहुंचे हैं। जबकि, बीते वर्ष पूरे यात्रा सीजन में यह संख्या एक लाख 40 हजार रही थी । बता दें कि वर्तमान में नौ एविएशन कंपनी केदारघाटी के विभिन्न हेलीपैड से धाम के लिए हेली सेवा का संचालन कर रही हैं।

वहीं आपदा के बाद केदारपुरी तो भी यात्रियों की सुविधाओं के लिए काफी विकसित किया है। वर्तमान में यहां एक समय में दस हजार तीर्थयात्री ठहर सकते हैं। प्रशासन ने इसके लए गढ़वाल मंडल विकास निगम समेत स्थानीय युवाओं को भी अस्थायी टेंट लगाने की अनुमति दी है। इसके अलावा पैदल यात्रा पड़ाव लिनचोली व भीमबली में भी तीन हजार यात्री रात्रि विश्राम कर सकते हैं। मास्टर प्लान के मुताबिक, केदार धाम में पुननिर्माण का कार्य अभी जारी है, जिससे यह धाम और भी नए प्रतिमान स्थापित करेगा।

2013 में आई आपद के बाद इन दस सालों के अंतराल में अब तक मंदिर में कई काम कराए जा चुके हैं। जिनमें मंदिर परिसर का खुला-खुला आंगन, शंकराचार्य की समाधि स्थली, आस्था पथ और घाट, सेंट्रल स्ट्रीट, यात्री आवासीय ब्लाक, तीन ध्यान गुफाएं, मंदिर के पीछे थ्री-लेयर सुरक्षा दीवार, मंदाकिनी व सरस्वती पर सुरक्षा कार्य, मार्गीय व अन्य मूलभूत सुविधाओं का विकास व सुधारीकरण, तीर्थ पुरोहितों के 210 आवास, गरुड़चट्टी-केदारनाथ मार्ग, आधुनिक सुविधाओं से युक्त स्वास्थ्य सुविधा, वीआइपी व मुख्य हेलीपैड, ईशानेश्वर मंदिर, हाट बाजार आदि पुननिर्माण किए जा चुके हैं हालांकि अभी प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत कई काम होने बाकी है।  

धारी देवी की मूर्ति हटाई तो आया प्रलय

केदारनाथ में तबाही का सबसे बड़ा कारण माना जाता है मां धारी देवी का विस्थापन। कहा जाता है कि अगर धारी देवी का मंदिर विस्थापित नहीं किया जाता तो केदारनाथ में प्रलय नहीं आता। बता दें कि धारी देवी का मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर कालियासुर नामक स्थान में विराजमान था बांध निर्माण के लिए 16 जून की शाम में 6 बजे शाम में धारी देवी की मूर्ति को यहां से विस्थापित कर दिया गया। इसके ठीक दो घंटे के बाद केदारघाटी में तबाही की शुरूआत हो गयी।

अशुभ मूहुर्त

आमतौर पर चार धार की यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने से होती है। उस वर्ष 12 मई को दोपहर बाद अक्षय तृतीया शुरू हो चुकी थी और 13 तारीख को 12 बजकर 24 मिनट तक अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त था। लेकिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट को इस शुभ मुहूर्त के बीत जाने के बाद खोला गया। खास बात ये हुई कि जिस मुहूर्त में यात्रा शुरू हुई वह पितृ पूजन मुहूर्त था। इस मुहूर्त में देवी-देवता की पूजा एवं कोई भी शुभ काम वर्जित माना जाता है। इसलिए अशुभ मुहूर्त को भी विनाश का कारण माना जा रहा है।

तीर्थों का अपमान

बहुत से श्रद्घालु ऐसा मानते हैं कि लोगों में तीर्थों के प्रति आस्था की कमी के चलते विनाश हुआ। यहां लोग तीर्थ करने के साथ साथ धुट्टियां बिताने और पिकनिक मनाने के लिए आने लगे थे। ऐसे लोगों में भक्ति कम दिखावा ज्यादा होता है। धनवान और रसूखदार व्यक्तियों के लिए तीर्थस्थानों पर विशेष पूजा और दर्शन की व्यवस्था है, जबकि सामन्य लोग लंबी कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतजार करते रहते हैं। तीर्थों में हो रहे इस भेद-भाव से केदारनाथ धाम में आपदा आई।

मैली होती गंगा का गुस्सा

मंदाकिनी, अलकनंदा और भागीरथी मिलकर गंगा बनती है। कई श्रद्धालुओं का विश्वास है कि गंगा अपने मैले होते स्वरूप और अपमान के चलते इतने रौद्र रूप में आ गई। कहा जाता है कि गंगा धरती पर आना ही नहीं चाहती थी लेकिन भगवान शिव के दबाव में आकर उन्हें धरती पर उतरना पड़ा। भगवान शिव ने गंगा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने का विश्वास दिलाया था। लेकिन बांध बनाकर हो रहा लगातार अपमान गंगा को सहन नहीं हो पाया और 16 जून को तबाही का भारी मंजर केदारनाथ में देखना पड़ा।

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Comments

  • D Devendra Kumar Bsp
  • S Sri bhagwan क्या इंडिया वाले यही सब सहने के लिये पैदा हुए है नितिन गडकरी साहब , कंपनी पर ऐसा फाइन लगाओ दूसरे भी याद रखे
  • P Pankaj kumar पुलिस
  • M Manish kumar parjapity Superb
  • P Pankaj kumar Jay shri ram