lok sabha election 2024 : बीजेपी के लिए आसान नहीं पश्चिमी यूपी की डगर
उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से नाराज हैं कई जातियां
मेरठ। राजनीति में अब जाति अहम हो गई है। उम्मीदवार की राजनैतिक हैसियत और उसका जनता से सरोकार अब मतलब नहीं रखता। यही कारण है की बदले राजनीतिक दौर में जनछबि वाले राजनेताओं का अभाव हो गया है। अब पार्टियों की पहली पसंद जाति, धनबल और सेलिब्रेटी चेहरे हो गए हैं।
अगर हम गौर करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तमाम लोकसभा सीटों के लिए हाल के सालों में जाति की गणित बड़ी दिलचस्प हो गई है। खासतौर से इस बार कई लोकसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक प्रयोगशाला बन गई है। बढ़ती गर्मी के बीच हुक्के की गुड़गुड़ाहट से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और सहारनपुर में तो हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ आज भी बड़े फैसले चंद मिनटों में लिए जाते हैं। लोकसभा चुनाव के पहले फेज के वोटिंग के लिए 10 दिन से भी कम समय बचा है, लेकिन भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार मुश्किल हालातों का सामना कर रही है। इस बेल्ट में बीजेपी ने पिछले दशक में हिंदू वोटों की एकजुटता के कारण अधिकांश सीटें जीती थीं। क्षेत्र में स्थितियां अब तेजी से बदल रही हैं, कुछ प्रमुख जातियां खुले तौर पर अपनी नाराजगी जता रही हैं और अपने समुदायों से भाजपा का बहिष्कार करने का आह्वान कर रही हैं। राजपूत, त्यागी और सैनी सहित ये प्रमुख जातियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने "कम प्रतिनिधित्व" से असंतुष्ट हैं।
हालात पर गौर करें तो बीती 7 अप्रैल को सहारनपुर में हुई राजपूतों की महापंचायत ने भाजपा शीर्ष नेतृत्व की नींदें उड़ा दी। यह समुदाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 10 प्रतिशत की बड़ी आबादी होने के बावजूद कम लोकसभा टिकट मिलने सहित कई मुद्दों से नाराज है। गाजियाबाद में जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह की जगह अतुल कुमार गर्ग को लाने के भाजपा के फैसले से समुदाय में नाराजगी फैल गई क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 10 फीसदी मतदाताओं को नजदीक के मुरादाबाद से ही एक टिकट मिला।
त्य़ागी और सैनी समाज भी पीछे नहीं
इसी तरह त्यागी और सैनी समाज भी बीजेपी के खिलाफ जगह-जगह पंचायतें कर रहा है। यदि उनका वोट जातिगत आधार पर विभाजित होता है तो निर्वाचन क्षेत्र-वार वोट शेयर भाजपा के पक्ष में नहीं जाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण का विश्लेषण करने से पता चलता है कि आगामी चुनाव भाजपा के लिए परेशानी भरा हो सकता है।
मेरठ में गोविल को लेकर राजनीति हुई तेज
मेरठ में बीजेपी Bjp ने रामायण टीवी सीरीज फेम अरुण गोविल को टिकट दिया है, जो खत्री/पंजाबी समुदाय से आते हैं। समाजवादी पार्टी ने ओबीसी समुदाय से सुनीता वर्मा को मैदान में उतारा है जबकि बहुजन समाज पार्टी ने त्यागी समुदाय से देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारा है। जैसे ही भाजपा ने निवर्तमान सांसद की जगह गोविल को उतारा, निर्वाचन क्षेत्र में जाति-आधारित राजनीति तेज हो गई और विपक्षी दल अन्य समुदाय के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करने लगे।
बहुजन समाज पार्टी की नजर मुस्लिम-दलित-राजपूत-त्यागी समुदायों के संयुक्त वोट पर है, जिन्होंने भाजपा के प्रति अपना असंतोष दिखाया है। समाजवादी पार्टी बीजेपी का विरोध करने वाले ओबीसी और अन्य समुदायों के साथ-साथ पारंपरिक मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है।
मेरठ के जातीय समीकरण
मुस्लिम: 32 फीसदी
जाटव: 15 फीसदी
ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी: 13 प्रतिशत
जाट: 7 फीसदी
गुज्जर: 4 फीसदी
राजपूत: 6 प्रतिशत
त्यागी: 6 प्रतिशत
ओबीसी और अन्य: 5 फीसदी
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सहारनपुर में राजपूत समाज में है खासी नाराजगी
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मुस्लिम गाड़ा समुदाय से आने वाले माजिद अली को सहारनपुर से मैदान में उतारा है। विपक्षी इंडिया गुट ने इमरान मसूद को टिकट दिया है, जो हाल ही में असंतुष्ट राजपूत समुदाय के साथ बैठकें कर रहे हैं। बीजेपी के लिए शर्मा-ब्राह्मण समुदाय से आने वाले राघव लखनपाल लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ेंगे। भाजपा के खिलाफ मुखर रहने वाले राजपूत नेता ठाकुर पूरन सिंह की मानें तो भाजपा वह पार्टी है जो राजपूत समुदाय को हाशिए पर धकेलने की कोशिश कर रही है। समुदाय को समझाने के लिए सेवा में लगाया गया है लेकिन अब समुदाय ने भाजपा को सबक सिखाने की कसम खाई है।
सहारनपुर के जातीय समीकरण
मुस्लिम: 42 फीसदी
जाटव: 17 फीसदी
राजपूत: 8 प्रतिशत
सैनी: 5 फीसदी
गुज्जर: 5 फीसदी
कश्यप/कोहर: 4 प्रतिशत
ब्राह्मण: 2.5 प्रतिशत
पंजाबी + बनिया: 8 प्रतिशत
त्यागी: 2.5 प्रतिशत
जाट: 1.5 प्रतिशत
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मुजफ्फरनगर में कई समुदाय खुलकर विरोध में उतरे
यहां बीजेपी ने निवर्तमान संजीव बलियान को टिकट दिया है, जिन्हें लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। समाजवादी पार्टी ने हरेंद्र मलिक को मैदान में उतारा है, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने वेदपाल प्रजापति को टिकट दिया है। त्यागी, राजपूत, सैनी और कश्यप समुदाय के नेताओं का कहना है कि अच्छी खासी आबादी होने के बावजूद उन्हें बीजेपी से चुनाव टिकट नहीं मिल रहा है। बालियान को कथित तौर पर उनकी अनदेखी करने और एक विशेष समुदाय के तुष्टिकरण के लिए प्रमुख जातियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
दूसरी तरफ ब्राह्मण-त्यागी समुदाय का मानना है कि पश्चिमी यूपी में त्यागी समुदाय की आबादी बहुत अधिक है। इसके बावजूद, भाजपा ने पिछले कई चुनावों से हमें लगातार नजरअंदाज किया। राज्य विधानसभा में हमारा प्रतिनिधित्व बहुत कम है। राज्यसभा और अब लोकसभा में शून्य। हम पार्टी को यह बताने के लिए पूरे पश्चिमी यूपी में पंचायतें कर रहे हैं कि त्यागी के भाजपा के पारंपरिक मतदाता होने की गलतफहमी इस बार नहीं दोहराई जाएगी।
मुजफ्फरनगर के जातीय समीकरण
मुस्लिम: 36 फीसदी
जाटव: 10 फीसदी
जाट: 8 फीसदी
राजपूत: 8 प्रतिशत
त्यागी: 5-6 फीसदी
सैनी: 4 फीसदी
कश्यप/कोहर: 5 प्रतिशत
गुज्जर: 3 फीसदी
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